





आजमगढ़ : पुरानी सब्जीमंडी के निकट हिन्दुस्तान से बातचीत में गुरुटोला के निवासी रवि साहू, खत्रीटोला के शिवम तिवारी, कटरा निवासी संतोष गुप्ता ने बताया कि होलिका दहन का होली से पहले बहुत ही ज्यादा महत्व है। होलिका दहन के साथ ही होली खेलना शुरु हो जाता है। घर से कुछ दूरी पर सबसे बड़े रुप में होलिका दहन का कार्यक्रम पुरानी सब्जी मंडी पर होता है। आजादी से पहले से यहां पर होलिका जलाई जाती रही है। हालांकि यहीं बगल में ही आसपास बिजली के चार ट्रांसफर्मर लगाए गए हैं। बिजली के तार भी गए हैं। लेकिन होलिका को इस प्रकार से जलाया जाता है ताकि कोई दुर्घटना न घटे। पटाखों को भी इस प्रकार से रखा जाता है कि पटाखा की चिंगारी ट्रांसफार्मर पर न जाए। उपलों का उपयोग करने से आग की लौ कम रहती है। बिजली विभाग के जेई से होलिका दहन के अवसर पर कम से कम एक कर्मचारी को पुरानी सब्जीमंडी चौराहे पर तैनात करने के लिए कहा गया है। पहले भी यहां पुरानी सब्जी मंडी पर होलिका जलती थी लेकिन एक भी ट्रांसफार्मर नहीं था। तब लालडिग्गी से इस इलाके में बिजली की सप्लाई होती थी लेकिन बाद में आबादी के और घनी होने से और बिजली का उपभोग ज्यादा होने से कुछ वर्षों में इस खाली स्थान के एक तरफ चार ट्रांसफार्मर लगा दिए गए हैं। पहले जाली लगी थी। अब हट गई है। यहीं पर पूरे इलाके के कूड़े को प्रतिदिन इकट्ठा करने के बाद नगरपालिका जेसीबी से हटाती है। यहीं पर अब लोग गाड़ी भी खड़ी कर देते हैं। कुल मिला कर होलिका दहन का स्थान समय के साथ सिकुड़ गया लकिन लोगों के जज्बे में कोई कमी नहीं आई है। पहले होलिका के प्रतीक के रुप में रेड़ का पेड़ बसंत पंचमी पर गड़ जाता था लेकिन अब जगह की कमी से एक दिन पूव उसको गाड़ा जाता है। फिलहाल रेड़ का पेड़ लाकर रखा गया है। यहां पर हैलोजन लाइट से रोशनी कर होलिका दहन के बाद ढोल ताशा के बाद रात में ही जमकर अबीर गुलाल संग होली खेलते हैं और लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। फिलहाल सभी लोग होली की तैयारी में जुटे हुए हैं। खत्रीटोला निवासी जीवनशंकर मिश्रा, गुरुटोला के मटरु अग्रवाल, कटरा निवासी नंदलाल गुप्ता ने बताया कि पुरानी सब्जी मंडी चौराहा के निकट घनी आबादी के बीच एक छोटे से खाली स्थान पर परंपरागत तरीके से होलिका दहन का आयोजन स्थानीय निवासियों के सौजन्य से किया जाता है। बहुत पहले लोग उपलों को सजा कर होलिका को जलाते थे लेकिन बाद में लकड़ी के बोटे का बहुतायत के रुप में इस्तेमाल होने लगा। लेकिन बाद में होलिका दहन में उपलों के महत्व को लेकर जागरुकता आई। जिसका परिणाम यह रहा कि पिछले तीन वर्षों से एक बार फिर से उपलों को विधिवत सजाकर रखा जाता है। दहन के मुहूर्त से पहले गुगुल, लोहबाद, कपूर, आंशिक रुप से चंदन की लकड़ी को रखते हैं। मान्यता है कि उपलों के इस्तेमाल से पर्यावरण शुद्ध होता है। लकड़ी की अपेक्षा उपले सस्ते भी मिल जाते हैं। उपलों को खरीद कर लाना पड़ता है। करीब से चार से पांच हजार रुपये कीमत के उपलों को सजाते हैं।