रूस में कुक, कारपेंटर, सिक्योरिटी गार्ड बनने गए युवकों के युद्ध में झोंके जाने से कई महीनों से नहीं मिल रहा हाल, परिजनों का रो रो कर बुरा हाल

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आजमगढ़ समेत आसपास के कई लोग नौकरी की तलाश में एजेंटों के जाल में फंस कर रूस चले गए। कंधरापुर थाना क्षेत्र के खोजापुर माधवपट्टी निवासी योगेंद्र यादव हैं। योगेंद्र के घर सन्नाटा है। पूछने पर योगेंद्र की मां फफक कर रोने लगती हैं। कहा- मऊ के एजेंट विनोद ने मेरे बेटे को फंसा दिया। गार्ड की नौकरी के लिए लेकर गए और बार्डर पर भेज दिया। विनोद 3 जनवरी 2024 को मेरे बेटे को घर से ले गया। कुछ दिन तक दिल्‍ली में रखा। इसके बाद रूस भेज दिया। हमें लगता था कि 6 महीने में बेटा वापस लौटेगा तो हमारी गरीबी दूर हो जाएगी। अप्रैल के पहले सप्ताह में हमारे पास बेटे का फोन आया। उसने बताया कि हमें लड़ाई के लिए तैयार किया जा रहा है। ऐसा लगता है अब ये लोग हम सभी को युद्ध में भेज देंगे। 25 अप्रैल को उसे लड़ाई में भेज दिया गया। 9 मई को मेरे बेटे को चोट लग गई। 25 मई 2024 तक बेटे से बात हुई। इसके बाद से आज तक बात नहीं हुई। हम लोग रोज घुट-घुटकर मर रहे हैं। हमने यहां के नेताओं, पुलिस और जिले के अफसरों सभी से गुहार लगाई, लेकिन कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा। हम गरीबी में जी लेंगे पर अपने बेटे के बिना नहीं जी पाएंगे। मां के रोते ही बहू, बच्चे और गांव के जो लोग वहां पर खड़े हो कर रोने लगे। मां ने खुद को संभालते हुए कहा- उसकी पत्नी और 4 बच्चों को कैसे संभालें, यही समझ नहीं आ रहा। योगेन्द्र यादव की पत्नी अनीता कहती हैं- रोज बच्चे अपने पापा के पास फोन लगाते हैं, पर बात नहीं हो पाती। हमें कोई रुपया पैसा नहीं चाहिए। मुझे मेरा सुहाग, मेरा पति चाहिए। मैं किससे अपना दर्द कहने जाऊं। योगेन्द्र यादव चार भाइयों में सबसे बड़े हैं। योगेन्द्र की 3 बेटियां और एक बेटा है। छोटे बच्चे पिता से बात करने की जिद करते हैं। हमारी एक नजर फोन पर ही लगी रहती है कि पता नहीं कब कॉल आ जाए। प्रकार आजमगढ़ शहर के गुलामी के पूरा के निवासी अजहरूद्दीन को 27 जनवरी 2024 को एजेंट विनोद अपने साथ लेकर गया था।अजहरूद्दीन की मां नसरीन कहती हैं- विनोद मेरे घर आया और बोला, सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी है, दो लाख रुपया महीना मिलेगा। सैलरी अच्छी समझकर मेरा बेटा वहां चला गया। जब बेटा वहां गया तो 2 महीने तक तो हम सभी से बात होती रही।
इसी बीच बेटे को ट्रेनिंग देकर लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया। फिर एक दिन सूचना मिली कि युद्ध में बम गिरने से बेटा घायल हो गया, यह बात जब अजहरूद्दीन के अब्बू मैनुद्दीन को पता चली तो उन्हें एक अप्रैल को हार्ट अटैक आ गया। आठ अप्रैल को उनकी मौत हो गई। पिता की मौत के बाद हमने एजेंट विनोद से अपने बेटे से बात कराने की जिद की। मगर उसने बात नहीं कराई। हमारे पास तो इलाज के भी पैसे नहीं थे। गहने बेचकर इलाज कराया। फिर भी अजहरूद्दीन के अब्बू नहीं बचे। हमने एंबेसी में फोन किया, बहुत मित्रतें कीं, इस दौरान खूब रोई। मेरी बेटे से अंतिम बात 27 अप्रैल को हुई थी। तब उसने कहा था कि अम्मी छह महीने तक यहां काम करूंगा और लौट आऊंगा। लेकिन आजतक उसका पता नहीं चला है। यह कहते हुए अजहरूद्दीन की मां रोने लगती हैं।मां को संभालते हुए बहन जेबा खान बोलीं- हमारे तीन भाईयों में यही
एक भाई कमाने वाला था। हम लोग अपने भाई को लेकर बहुत दर्द से गुजर रहे हैं। जिस एग्रीमेंट पर साइन कराया गया, वो रूसी भाषा में था। मेरे भाई के साथ धोखा हुआ है। हमारी
सरकार से मांग है कि सरकार हमारी मदद करे। मुबारकपुर थाना के सठियांव में रूस गए हुमेश्वर के पिता इंदु प्रकाश ने कहा, घर में सब परेशान हैं, बेटे को याद कर रोते रहते हैं।
हुमेश्वर प्रसाद के पिता बोले- रोते-रोते पत्नी सो जाती है। हम लोगों का बहुत बुरा हाल है। हम खाना नहीं खा पाते।एजेंट विनोद पूर्वांचल के 4 लोगों
को रूस ले गया था। वहां पर 2 लाख रुपए महीने की सैलरी मिलने की बात कही गई। उसने सभी के पासपोर्ट बनवाए। फिर सभी का रूस में कारपेंटर, कुक और सिक्योरिटी गार्ड के काम के लिए वीजा बनवाया। फिर सभी को रूस ले गया। अप्रैल- मई तक सभी की अपने घर वालों से बात होती रही। उसके बाद नहीं। विनोद की भी आखिरी बार अप्रैल में पिता से
बात हुई थी। उसके बाद से उससे संपर्क नहीं हो पा रहा। अब तक आजमगढ़ के कन्हैया यादव और मऊ के श्यामसुंदर और सुनील यादव की रूस-यूक्रेन जंग में मौत हो चुकी है।
आजमगढ़ के राकेश कुमार और मऊ के बृजेश यादव घायल होने के बाद घर लौट आए हैं। वहीं विनोद यादव, जोगिंदर यादव, अरविंद यादव, रामचंद्रा, अजहरुद्दीन खान, हुमेश्वर
प्रसाद, दीपक, धीरेंद्र कुमार का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। घर वालों को उनके आने का इंतजार है।

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