
आजमगढ़ जिले में महर्षि दुर्वासा धाम में सावन के महीने में भक्तों का भारी मेला उमड़ता है। महर्षि दुर्वासा ने सतयुग में अपने 88000 से अधिक ऋषियों मुनियों के साथ घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि आज भी या भूमि तपोभूम के नाम से जानी जाती है। महर्षि दुर्वासा धाम में महाशिवरात्रि कार्तिक पूर्णिमा के साथ-साथ श्रवण के महीने में भक्तों का भारी मेला उमड़ता है। प्रतिदिन मंदिर में सुबह को भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है। इसके साथ ही संध्या श्रृंगार कर आरती की जाती है। महर्षि दुर्वासा की इस आरती में शामिल होने बड़ी संख्या में भक्ति दूर-दूर से आते हैं।
सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद तक चमकता है त्रिशूल
महर्षि दुर्वासा धाम के शिखर पर लगा त्रिशूल सूर्योदय से पहले और शाम को सूर्यास्त के बाद तक चमकता रहता है। महर्षि दुर्वासा धाम की कहानी आज की नहीं बल्कि आदि की कहानी है। आदिकाल से महर्षि दुर्वासा की यह तपोभूमि रही है और सतयुग से चली आ रही इस परंपरा का आज भी निर्वाह किया जा रहा है। महर्षि दुर्वासा धाम के संत बाबा रघुवर दास का कहना है कि सतयुग से या भूमि है यही कारण है कि यहां पर दूर-दूर से बड़ी संख्या में भक्ति भगवान भोलेनाथ का दर्शन अभिषेक करने आते हैं।
